Sunday 9 September 2012

धुंध

दिखती तो नही धुंध कहीं
क्यों ये साये धुंधलाये हैं

पतझड़ का नही ये मौसम
क्यों फूल पत्ते मुरझाये हैं

गूंजा नही घोंसलों में कलरव
जब महकती शीतल हवाएं हैं

नाचे नहीं मयूर जंगल में
जब नभ में बादल छाये हैं

गूंजी है आकाश में सरगम
दूर से ही सुन पाये हैं

सुनी नहीं जो तानें अब तक
लगता है भूल आये हैं 

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