नन्हा - सा अंकुर
ले रहा अंगडाई अंतर में
कब कैसे बदल गया
सारा जहां पल भर में,
मन के पावन जल से हो सिंचित
पलकों पर सजी खुशियों से
निखार पायेगा,
आँखों में भरी रौशनी से हो दीप्त
मन में उतर आएगा,
खोलेगा आँखें -
बनकर नन्हा सा फूल,
खुशबू से अपनी -
सारा जहाँ महकाएगा...
बहुत ही सुन्दर रचना ,और अत्यंत सुन्दर ब्लॉग ,आकर बहुत प्रसन्नता मिली
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता। आपका नन्हा अंकुर पुष्पित पल्लवित होकर आपके समूचे जीवन की बगिया यों ही महकाता रहे।
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