Friday 6 July 2012

माँ


माँ ज़िन्दगी मैंने तुझसे पाई है
माँ तुझमे सागर सी गहराई है

जब मैं नहीं था दुनिया में
तेरे अन्दर जी रहा था
तेरी छाया में पलते पलते
सवाल दिल में यही रहा था

माँ कैसी होगी
वो छाया कैसी होगी

जब आँखें खोली
दुनिया में आया
डरा-सा, सहमा-सा
तूने दुलारकर थपथपाया
और सीने से मुझे लगाया

जैसा सोचा था मैंने
उससे बढ़कर तुझको पाया
तेरे आँचल की छाँव में
खुद को महफूज़ पाया.

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