Wednesday 11 July 2012

सत्य के पुतले

सत्य के पुतले
सफेद काग़ज़ - सा तन
निर्मल जल - सा स्वच्छ मन
धवल किरणों - से
उजले दिखते हैं हम 
मात दर्पण को करते हैं हम

चौराहे पर खड़े / सन्देश पट्ट लिए
हर राह गुज़रते को देते हैं नसीहत -
'सदा सत्य बोलो'

स्वयंमेव / अपने में 
कितनी कालिमा / कितना छल
कितना अंधकार समेटे हैं
कितने मलिन / कितने कटु हैं

करते हैं -
सत्य का चीरफाड़ / उड़ाते हैं धज्जियाँ
मिथ्या तर्क कर / असत्य को -
सत्य  का जामा  पहनाने की  -
करते हैं कोशिश,

नाकाम होने पर - 
स्वयं गढ़ने लगते -
सत्य की नई नई परिभाषाएं
क्योंकि - हमें प्रस्तुत करने हैं -
ऊँचे आदर्श / करनी है स्वार्थ सिद्धि,

किये रखना है वश -
हर जाति हर / कौम को
हर संस्कृति  / हर समुदाय को 
हर जीव / हर जन को
हर पंछी / हर प्राणी को
फूल को / हर उपवन को
पत्ती को / हर पौध को

हर ईंट हर पत्थर को
हर दर और दीवार को
हर रस्म और रिवाज़ को
देश को समाज को
हर बंधन / हर रिश्ते को
अपनेपन  और प्यार को

इसलिए, हम करेंगे - अन्वेषण
खोजेंगे नए नए अर्थ सत्य के
ताकि हम कर सकें / एक छत्र राज्य

पर तुम कभी हिमाकत न करना
हमारी टोह लेने की चाहत न रखना
नहीं तो हम तुम्हारे मस्तक पर
सदा के लिए मंढ़ देंगे आरोप
की तुम पापी हो / अधर्मी हो / दुष्ट हो
क्योंकि हम/ हम हैं
और तुम / तुम

और चलता रहेगा ढोंग
हमारे सत्य का / आदर्शों का / पुण्य  का / धर्म का 
और तुम हमें छू भी न पाओगे
हमारे विरुद्ध / सत्य कहने पर भी
असत्य कहलाओगे 
जब तक - हम / हम हैं
और तुम / तुम हो...





1 comment:

  1. this is the reality which is going on continuously in the life of each and every.

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