तुम चल पड़ोगे जब
मंजिल की ओर
राह की धूप-
तुम्हारा नाज़ुक तन झुलसा देगी
तब थककर तुम
बैठ जाओगे
राह में किसी वृक्ष के नीचे
विश्राम को-
फिर तुम्हारा चेतन मन -
तुम्हें झकझोर देगा
क्या थककर बैठ जाने से
बात बनेगी, मंजिल मिलेगी?
तुम फिर उठ खड़े हो जाओगे
फिर चल पड़ोगे
मंजिल की ओर
सर्द हवा में ठिठुरते-
हथेलियाँ मलते और सिकुड़ते
फिर देखकर कहीं
बैठ जाओगे,
हाथ तापने को
जलाई आंच
फिर तुम्हारा अंतर्मन
तुमसे पूछेगा -
कब तक बैठे रहोगे
हाथ तापते
तुम फिर खड़े हो जाओगे
और चल दोगे आगे
चलते चलते पाओगे
सूखे पत्ते तिनकों से
हवा में उड़ते
पांवों में आ पड़ते
तुम्हारा मन
बेचैन हो उठेगा
और तुम
उलझन में पड़ जाओगे
फिर अवचेतन मन
तुम्हें जगायेगा
आगे राह दिखायेगा
तुम फिर बढ़ चलोगे
चेतन हो
फिर बारिश की
बूँदें तुम पर बरसेंगी
तुम उन फुहारों में
तर हो जाओगे
मिट्टी से खुशबू उठती पाओगे
जिसके लिए अब तक
भटक रहे थे रुक रुककर
उतावले थे थम थमकर
मंजिल की ओर
राह की धूप-
तुम्हारा नाज़ुक तन झुलसा देगी
तब थककर तुम
बैठ जाओगे
राह में किसी वृक्ष के नीचे
विश्राम को-
फिर तुम्हारा चेतन मन -
तुम्हें झकझोर देगा
क्या थककर बैठ जाने से
बात बनेगी, मंजिल मिलेगी?
तुम फिर उठ खड़े हो जाओगे
फिर चल पड़ोगे
मंजिल की ओर
सर्द हवा में ठिठुरते-
हथेलियाँ मलते और सिकुड़ते
फिर देखकर कहीं
बैठ जाओगे,
हाथ तापने को
जलाई आंच
फिर तुम्हारा अंतर्मन
तुमसे पूछेगा -
कब तक बैठे रहोगे
हाथ तापते
तुम फिर खड़े हो जाओगे
और चल दोगे आगे
चलते चलते पाओगे
सूखे पत्ते तिनकों से
हवा में उड़ते
पांवों में आ पड़ते
तुम्हारा मन
बेचैन हो उठेगा
और तुम
उलझन में पड़ जाओगे
फिर अवचेतन मन
तुम्हें जगायेगा
आगे राह दिखायेगा
तुम फिर बढ़ चलोगे
चेतन हो
फिर बारिश की
बूँदें तुम पर बरसेंगी
तुम उन फुहारों में
तर हो जाओगे
मिट्टी से खुशबू उठती पाओगे
जिसके लिए अब तक
भटक रहे थे रुक रुककर
उतावले थे थम थमकर
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