बहुत दिनों बाद है जो कि
खुली हवा में सांस आया है
बहुत दिनों बाद है जो कि
ताज़ा एक झोंका आया है
सुबह- सर्दियों सी सरसराती है
शाम गोद में सिर रख सहलाती है
बहुत दिनों के बाद है जो कि
निश्छल सा सान्निध्य पाया है
सपनो की जैसे होती है दस्तक
खुला खुला है धरती से नभ तक
बहुत दिनों बाद है जो कि
तन मन में स्पंदन आया है....
खुली हवा में सांस आया है
बहुत दिनों बाद है जो कि
ताज़ा एक झोंका आया है
सुबह- सर्दियों सी सरसराती है
शाम गोद में सिर रख सहलाती है
बहुत दिनों के बाद है जो कि
निश्छल सा सान्निध्य पाया है
सपनो की जैसे होती है दस्तक
खुला खुला है धरती से नभ तक
बहुत दिनों बाद है जो कि
तन मन में स्पंदन आया है....
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