Friday, 14 September 2012

बदलाव

अभी कल परसों की ही तो बात है
बगीचे में -
कलियाँ खिलती थीं
भीनी भीनी खुशबू से
आँगन महका करता था
हरे - भरे वृक्षों पर उगी
नई - नई कोंपलें देख
मन प्रफ्फुल्लित हो उठता था
उनकी छाया -
शीतलता देती थी
शाखों पर बैठे पक्षियों के
मिश्रित मधुर स्वर गूंजा करते थे
पर अचानक,
आज-
फूल, काँटों से चुभने लगे
खुशबू बदल गई -
उमस भरी हवाओं में
झड़ गई पत्तियां पेड़ों से
रह गई - सिर्फ सूखी टहनियां
धुप झुलसाने लगी -
जून की सी लू बनकर,
पंछियों का माधुर्य खो गया
उनके स्वर- कानों को कर्कश लगने लगे
अचानक सब कुछ - कितना बदल गया 


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