बस में नहीं यहाँ
ज़मीं के उजाले भी
फिर शिकवा कैसा
आसमां के चाँद से
मद्धम ही सही,
छिटकी तो है चांदनी
शीतलता बिखराने-
घर के आँगन में
भरने को आतुर है मन-
बस-मुट्ठी भर तारे दामन में.
ज़मीं के उजाले भी
फिर शिकवा कैसा
आसमां के चाँद से
मद्धम ही सही,
छिटकी तो है चांदनी
शीतलता बिखराने-
घर के आँगन में
भरने को आतुर है मन-
बस-मुट्ठी भर तारे दामन में.
छिटकी तो है चांदनी
ReplyDeleteशीतलता बिखराने-
घर के आँगन में
भरने को आतुर है मन-
बस-मुट्ठी भर तारे दामन में....Good