Friday, 6 July 2012

मुट्ठी भर तारे

बस में नहीं यहाँ
ज़मीं के उजाले भी
फिर शिकवा कैसा
आसमां के चाँद से
मद्धम ही सही,
छिटकी तो है चांदनी
शीतलता बिखराने-
घर के आँगन में
भरने को आतुर है मन-
बस-मुट्ठी भर तारे दामन में.

1 comment:

  1. छिटकी तो है चांदनी
    शीतलता बिखराने-
    घर के आँगन में
    भरने को आतुर है मन-
    बस-मुट्ठी भर तारे दामन में....Good

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