Wednesday, 11 July 2012

कोई क्या जाने

शाम ढलते ढलते
शांत लहरें रह जाती हैं साहिल पर
थककर शांत हो गई हों मानो
दिन भर कितने तूफान आये
कोई क्या जाने..

बरसात थमने पर
खुला आसमान नज़र आता है
पल में सब धुल गया मानो
गरज - गरज बादल  मंडराए 
कोई क्या जाने..

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