जा छुपा है बादल में
क्यूँ मुझे तड़पाने को
कि अब नींद नहीं आती
ए चाँद तुझे देखे बिना..
तनहाई में भटकना
अब आदत हो गई है
जान भी नहीं जाती
ए चाँद तुझे देखे बिना..
ये तेरी शरारत है
कि लेता है इम्तेहान मेरा
ये अदा समझ नहीं आती
ए चाँद तुझे देखे बिना..
क्यूँ मुझे तड़पाने को
कि अब नींद नहीं आती
ए चाँद तुझे देखे बिना..
तनहाई में भटकना
अब आदत हो गई है
जान भी नहीं जाती
ए चाँद तुझे देखे बिना..
ये तेरी शरारत है
कि लेता है इम्तेहान मेरा
ये अदा समझ नहीं आती
ए चाँद तुझे देखे बिना..
तनहाई में भटकना
ReplyDeleteअब आदत हो गई है
जान भी नहीं जाती
ए चाँद तुझे देखे बिना..bahut hi sundar panktiyan.bahut hi bhavpradhan kavita. congrats.wid regards