Monday, 9 July 2012

चाँद तुझे देखे बिना

जा छुपा है बादल में
क्यूँ  मुझे तड़पाने को
कि अब नींद नहीं आती
ए चाँद तुझे देखे बिना..

तनहाई में भटकना 
अब आदत हो गई है
जान भी नहीं जाती
ए चाँद तुझे देखे बिना..

ये तेरी शरारत है
कि लेता है इम्तेहान मेरा
ये अदा समझ नहीं आती
ए चाँद तुझे देखे बिना..

 

1 comment:

  1. तनहाई में भटकना
    अब आदत हो गई है
    जान भी नहीं जाती
    ए चाँद तुझे देखे बिना..bahut hi sundar panktiyan.bahut hi bhavpradhan kavita. congrats.wid regards

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