Monday, 9 July 2012

क्यूँ

क्यूँ चली आती हैं ये हवाएँ
एक हूँक - सी उठाती मन में,
जिनको मोड़ दिया था हमने.

कल की तस्वीर दिखा दिखा
क्यूँ  चिढ़ा रहा आइना,
जो तोड़ दिया था हमने.

झुलसाने लगा है सूरज
अपनी तपती किरणों से जो,
प्रकाश पुंज माना था हमने।.

कर रहा है अठखेलियाँ
छुप-छुपकर चाँद भी,
जिसे सखा जाना था हमने.

  

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