क्यूँ चली आती हैं ये हवाएँ
एक हूँक - सी उठाती मन में,
जिनको मोड़ दिया था हमने.
कल की तस्वीर दिखा दिखा
क्यूँ चिढ़ा रहा आइना,
जो तोड़ दिया था हमने.
झुलसाने लगा है सूरज
अपनी तपती किरणों से जो,
प्रकाश पुंज माना था हमने।.
कर रहा है अठखेलियाँ
छुप-छुपकर चाँद भी,
जिसे सखा जाना था हमने.
एक हूँक - सी उठाती मन में,
जिनको मोड़ दिया था हमने.
कल की तस्वीर दिखा दिखा
क्यूँ चिढ़ा रहा आइना,
जो तोड़ दिया था हमने.
झुलसाने लगा है सूरज
अपनी तपती किरणों से जो,
प्रकाश पुंज माना था हमने।.
कर रहा है अठखेलियाँ
छुप-छुपकर चाँद भी,
जिसे सखा जाना था हमने.
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