Monday, 30 July 2012

रुपहले रंग

रुपहले इन रंगों  में
यूँ रंग गई आँखें
कि नज़र आया न
कुछ और फिर...

डूब गए इस कदर
की भूल बैठे सब

बनकर बादल आज ये रंग -
बरस गए आँखों से,तो जाना-
और भी हैं रंग इस जहाँ में,

बेतरतीब हो चली थी
हर चीज़ ज़िन्दगी में,
होश में आये तो जाना-
जीने का भी है ढंग इस जहाँ में...


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