Sunday, 29 July 2012

क्यूँ, किसलिये

क्यूँ, किसलिये?
कैसा संताप मन में...
जबकि ये पता है-
सौंप रखा है -
वो पल ज़िन्दगी ने -
आने वाले कल की अंगड़ाई को...

फिर क्यूँ नहीं -
कुछ देर आँखें मूँद,
भूल जाएँ हम
इस पल की परछाई को...

क्या रखा है
इस लम्हे में ?

क्यूँ इसको थामे रखा है ?
गुज़र जाने दो इसे-
जिस पल को बांधे रखा है...


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