रात का सन्नाटा देख
मन उद्विग्न हो उठता है
आभास होता है -
यहीं तक था सफ़र उजाले का ?
निराश मन भटकने लगता है
फिर - किरणें आती हैं,
सवेरा आता है, उजियारा फैलाता है,
इस प्रभात बेला में -
मन प्रफुल्लित हो उठता है
अँधेरे से निकल -
फूल - सा खिल उठता है.
इस बेला में जितना प्रकाश / उज्ज्वलता
संजो सकें, कम है
फिर सांझ के लिए
होने को तत्पर
ताकि / फिर
निराश न हों
हताश न हों
संचित रोशनी का एहसास कर उद्वेलित हों,
फिर आएगा दिन
यही सृष्टि / जीवन / सृष्टि का नियम है
अनिवार
अनवरत
अनंत...
superb. Like it.
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