Monday, 9 July 2012

आवाज़

आवाज़ जो गूंजी है
खनक चूड़ी की नहीं
और न -
छनक है पायल की 

ये स्वर लहरी तो
मन के तार की है.

मन को -
क्या समझेगा कोई
क्या जानेगा कोई..

मन की बात
तो बस उस पार की है..

2 comments:

  1. Bahut sundar, saral rachana, Shubhkamnayein!

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  2. कविता अति उत्तम है यह दर्शाता है की लेखक को उस सागर की गहरे का आभास है जहाँ से मोती चुने जाते हैं. पर आध्यात्मिक रूप से मन इस पर की है उस पार की आत्मा है या जो भी नाम दें. तभी कहा गया समाधी उस अवस्था का नाम है जब आपका मन पूर्णत शुन्य हो जाये .

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